बीते हर लम्हें में , एक तेरा ही इंतज़ार रहा है ,
यूँ हर रात को जैसे , एक भोर का इंतज़ार रहा है ,
वक़्त थमा नहीं कभी , और मैं भी रुका नहीं हूँ अभी ,
फिर भी न जाने क्यूँ ,
अब पाओं के नीचे जमीं नहीं मिलती ,
चलती हुई साँसों को कोई डोर नहीं मिलती ,
दिल तो धड़कता है पर एहसास नहीं है ,
न जाने क्या हुआ है अब ,
इस जिस्म को जैसे ~♥ कल्प ♥~ की "रूह" नहीं मिलती !!
क्या यही प्यार है ...बहुत खूब लिखा है आपने समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
ji shukriya ...main jaroor read karunga...dhanyawad...
Deleteएहसास बना रहे तो ...जिस्म को रूह भी मिल जायेगी ....
ReplyDeletekya baat kahi hai aapne...hausla afzayi ka shukriya...
Deleteभोर के इंतज़ार का ये तरीका बेहद खूबसूरत...उम्दा भाव
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