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Friday, November 25, 2011

कोई रसम तक न निभा सकी


न  मैं  पास  उसको  बुला  सकी
न  मैं  दिल  की  बात  बता  सकी !
वोह  हंसी  हंसी  मैं  ही  चल  दिए
कि  मैं  होठ तक  न  हिला  सकी !!

यूँ  ही  सोचती  रही  दूर  तलक
मगर  उसको  कुछ  न  बता  सकी !
ये  मुक़ाम ही  था  अजीब  सा  के
मैं  खुद  को  भी  न  बचा  सकी !!

वो  जुदा  भी  ऐसे  हुआ  कि  मैं
कोई  रसम  तक  न  निभा  सकी !!!

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