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Tuesday, November 29, 2011

लेकिन कभी रोया नहीं

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक्श को धोया नहीं
तू ने मुझको खो दिया , मैंने तुझे खोया नहीं

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आंखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब् को देर तक सोया नहीं

हर तरफ दीवार- ओ - दर और उनमें आँखों का हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब- ए- गोया नहीं

जुर्म आदम ने किया और नस्ल- ए- आदम को सज़ा
काटता हूँ ज़िन्दगी भर मैंने जो बोया नहीं

जानता हूँ एक ऐसे शख्स को मैं भी ‘ मुनीर ’
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं !!

1 comment:

  1. acchi rachana hai...ise padhakar ek shayari yad aa gayi...
    ""ankho se ansu futkar samandar ban gaya
    dil tut ke yu bikhara ki khanjar ban gaya
    jise yu mom si najuk samajhta tha wo dil dard se gujara to patthar ban gaya...""

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